ज्ञान की कहानी, रवि की ज़ुबानी।
एक बार कंधे पर कपड़े का थान लादे और हाट-बाजार जाने की तैयारी कर रहे थे। संत नामदेव जी से उनकी पत्नि ने कहा- सात्विक जी! आज घर में खाने को कुछ भी नहीं है। आटा, नमक, दाल, चावल, गुड़ और शकर सब खत्म हो गए हैं। शाम को बाजार से आते हुए घर के लिए राशन का सामान लेते आना। भक्त नामदेव जी ने उत्तर दिया- देखता हूँ जैसे कान्हा जी की कृपा होगी। यदि कोई अच्छा मूल्य नहीं मिला, तो निश्चय ही घर में आज धन-धान्य आ जाएगा। पत्नि बोली संत जी! अगर अच्छी कीमत ना भी मिले, तो भी इस बुने हुए थान को बेचकर कुछ राशन तो ले आते हैं। घर के बड़े-बूढ़े तो भूख से मरने वाले, किन्तु बच्चे अभी छोटे हैं उनके लिए तो कुछ ले ही आते हैं। संत नामदेव जी बोले जैसे मेरी मोहन की इच्छा। ऐसा कहकर भक्त नामदेव जी हाट-बाजार को चले गए।
बाजार में उन्हें किसी ने पुकारा- वाह साईं! कपड़ा तो बड़ा अच्छा बुना है, और ठोक भी अच्छी लगाई है। तेरा परिवार बसता रहा, ये फकीरदारी में कांप-कांप कर मर जाएगा। दया के घर में आ और रब के नाम पर दो चादर का कपड़ा इस फकीर की झोली में डाल दे।
भक्त नामदेव जी बोले - दो चादरो में कितना कपड़ा लगेगा फकीर जी? फकीर ने कपड़ा मांगा, इतेफाक से भक्त नामदेव जी के थान में कुल कपड़ा समान था। और भक्त नामदेव जी ने पूरा थान उस फकीर को दान कर दिया। दान करने के बाद जब भक्त नामदेव जी घर लौटने लगे तो उनके सामने परिजनो के भूखे चेहरे नजर आने लगे। फिर पत्नि की कही बात, उस घर में खाने की सब सामग्री खत्म है। कीमत कम भी मिली तो भी बच्चो के लिए तो कुछ ले ही आते हैं। अब कीमत तो क्या, थान भी दान जा चुका था। भक्त नामदेव जी एकांत मे पीपल की छाँव मे बैठ कर सोचने लगे लगे। जैसी मेरी कान्हा की इच्छा। जब सारी सृष्टि का सार पूर्ति वो खुद करती है, तो अब मेरे परिवार की सार भी वो ही करेगा। और फिर भक्त नामदेव जी अपने हरि के भाई में लीन गए। अब भगवान कहां रुकेंगे वाले थे। भक्त नामदेव जी ने पूरे परिवार की जिम्मेदारी अब उनके सुपुर्द जो कर दी थी। अब भगवान जी ने भक्त जी की झोंपड़ी का दरवाजा खटखटाया। नामदेव जी की पत्नी ने पूछा- कौन है ? आवाज आई नामदेव का घर ना ? भगवान जी ने पूछा। अंदर से आवाज हां जी आपको कुछ होना चाहिए ? भगवान सोचने लगे कि धन्य है नामदेव जी का परिवार घर मे कुछ भी नही है, फिर भी ह्रदय मे देने की सहायता की जिज्ञासा है l भगवान बोले द्वार खोलिये। लेकिन आप कौन ?
भगवान जी ने कहा- सेवक की क्या पहचान होती है भगतानी ? जैसे नामदेव जी कान्हा के सेवक, वैसे ही मैं नामदेव जी का सेवक हूँ। ये राशन का सामान रखवा लो। पत्नि ने दरवाजा पूरा खोल दिया। फिर इतना राशन घर में उतरना शुरू हुआ, कि घर के जीवों की घर में रहने की जगह ही कम पड़ गई बहुत सारे ! नामदेव जी ने भेजा है ? मुझे नहीं लगता ? पत्नी ने पूछा।भगवान जी ने कहा- हाँ भगतानी! आज नामदेव का थान सच्ची सरकार ने खोला है। जो नामदेव का सामर्थ्य था, उसने भुगता दी थी। और अब जो मेरी सरकार का सामर्थ्य है, वह चुकता कर रही है। जगह और बताओ ? सभी कुछ आने वाला है भगत जी के घर में। शाम ढलने लगी थी और रात का अंधेरा अपने पांव पारेने लगा था। समान रखवाते-रखवाते पत्नि थक चुकी थी। बाल गृह में अमीरी आते देख खुश हो गए थे। वो कभी बोरे से शकर निकाल कर खाते हैं और कभी गुड़। कभी मेवे देख कर मन ललचाते और झोली भर-भर कर मेवे लेकर बैठ जाते हैं। उनके बालमन अभी तक तृप्त नहीं हुए थे। भक्त नामदेव जी अभी तक घर नहीं आये थे, पर सामान आना लगातार जारी था। आखिरकार पत्नी ने हाथ जोड़ कर कहा- सेवक जी! अब बाकी का सामान संत जी के आने के बाद ही आप ले आते हैं। हमें उन्हें खोजने जाना है, क्योंकी वह अभी तक घर नहीं आए हैं। भगवान जी बोले- वो तो गाँव के बाहर पीपल के नीचे बैठकर हरि का भजन-सिमरन कर रहे हैं। अब परिजन नामदेव जी को देखने चला गया। सब परिवार वालों को सामने देखकर नामदेव जी सोच लगे, जरूर ये भूख से बेहाल होकर मुझे प्रणाम कर रहे हैं।
इससे पहले की संत नामदेव जी कुछ कहते हैं, उनकी पत्नी बोल पड़ीं- कुछ पैसे बचाने लेने थे। अगर कपड़े के थान अच्छे भाव वाले गए थे, तो सारा सामान संत जी आज ही खरीद कर घर भेजना था ? भक्त नामदेव जी कुछ पल के लिए थोड़ा विस्मित हुए। फिर बच्चों के खिलते चेहरे को देखकर उन्हें एहसास हो गया, कि जरूर मेरे प्रभु ने कोई खेल कर दिया है। पत्नि ने कहा अच्छी सरकार को आपने थान बेचा और वह तो उसी घर मे प्रेषक से रुकता ही नहीं था। पता नहीं कितने साल तक का राशन दे गया। उसके मिन्नत कर के रुकी हुई है बस करो! बाकी संत जी के आने के बाद उन्हें पूछने के बाद कहीं रखवाएँगे। भक्त नामदेव जी हँसने लगे और बोले! वह सरकार ही ऐसी है। जब देना शुरू करता है, तो सब लेने वाले थक जाते हैं।
उसकी बख्शीश कभी भी खत्म नहीं होती है ...!
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जय श्री राधा गोविंद !
रवि शर्मा
आर एस न्यूज़
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