होलाष्टक: होलाष्टक पर क्या कहता हैं विज्ञान, जाने इस समय क्यों वर्जित होते है शुभ कार्य, 2025 इतने दिन रहेंगे होलाष्टक।

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By - Ravi Sharma
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होलाष्टक: होलाष्टक पर क्या कहता हैं विज्ञान, जाने इस समय क्यों वर्जित होते है शुभ कार्य, 2025 इतने दिन रहेंगे होलाष्टक।


नई दिल्ली में, ब्यूरो RSN: होलाष्टक एक धार्मिक परंपरा है, जिसे विशेष रूप से उत्तर भारत में माना जाता है। इस दौरान कोई शुभ कार्य नहीं किए जाते, लेकिन भगवान की भक्ति, दान-पुण्य और होली से जुड़े अनुष्ठान किए जा सकते हैं। यह काल भक्त प्रह्लाद की भक्ति की परीक्षा का प्रतीक है और अंततः असत्य पर सत्य की विजय का संदेश देता है। होलाष्टक हिंदू धर्म में एक विशेष अवधि होती है, जो होली से आठ दिन पहले शुरू होती है, और होली (रंग वाले) के दिन समाप्त होती है। साल 2025 में होलाष्टक फाल्गुन शुक्ल अष्टमी (7 मार्च) से लेकर 14 मार्च (पूर्णिमा) तक रहेगा। 13 मार्च को होलिका दहन होगा और 14 मार्च को रंगों की होली खेली जाएगी। सनातन धर्म में इस दौरान इन शुभ कार्यो को वर्जित माना गया हैं। यह काल आमतौर पर फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर पूर्णिमा (होलिका दहन) तक रहता है। इसी के साथ होलाष्टक में भगवान विष्णु और शिव की पूजा का महत्व बढ़ जाता है। इन आठ दिनों में प्रकृति में उथल-पुथल रहती है, जिससे मनोभावों में भी परिवर्तन होते हैं। इस साल 14 मार्च की धुलंडी यानी खेलने वाली होली है, और एक हफ्ते पहले मतलब 7 मार्च से 14 मार्च के बीच का समय होलाष्टक का रहेगा जिसमे किसी भी तरह का मांगलिक कार्य जैसे (शादी, मुंडन, गृह प्रवेश आदि) नहीं किए जाते। 


गृह प्रवेश – नए घर में प्रवेश या गृह-प्रवेश पूजन नहीं किया जाता।

मुंडन संस्कार – बच्चे का (मुंडन) नवजात शिशुओं के प्रथम बार बाल उतरवाना करवाना वर्जित होता है।

नया व्यापार या निवेश – इस अवधि में कोई नया व्यापार शुरू नहीं किया जाता और कोई बड़ा निवेश भी नहीं किया जाता।

नया निर्माण कार्य – घर, दुकान या अन्य कोई नया निर्माण कार्य शुरू करना टाल दिया जाता है।

शादी-विवाह – इस दौरान विवाह जैसे शुभ कार्य भी नहीं किए जाते।


होलाष्टक का महत्व व मान्यताएं।

धर्मिक मान्यताओं के अनुसार होलाष्टक का संबंध भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है, कि इन आठ दिनों में हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को अनेक प्रकार से यातनाएँ दी थीं, लेकिन वह भगवान विष्णु की भक्ति में अडिग रहे। अंततः इस पीड़ा का अंत होलिका दहन के दिन हुआ, जब भक्त प्रह्लाद को बचाकर भगवान ने होलिका का अंत कर दिया। इसी के कारण होली दहन वाले दिन को बुराई के प्रति अच्छाई के दिन के रूप में समझा जाता हैं, तथा इन आठ दिनों को अशुभ माना जाता है और कोई भी शुभ कार्य (शादी, मुंडन, गृह प्रवेश आदि) नहीं किए जाते।


होलाष्टक में क्या करें ?

हालाँकि, यह समय शुभ कार्यों के लिए वर्जित माना जाता है, लेकिन भक्तिभाव, ध्यान और दान-पुण्य के लिए इसे अत्यंत लाभकारी बताया गया है। भगवान विष्णु एवं श्रीकृष्ण की आराधना करें, होली से जुड़े अनुष्ठान करें, कीर्तन और भजन करें। दान-दक्षिणा दें – गरीबों को अन्न, वस्त्र और धन दान करना शुभ होता है। होलाष्टक का समय संयम और भक्ति का होता है। 


होलाष्टक का वैज्ञानिक पक्ष।

कुछ विद्वानों का मानना है, कि इस समय मौसम में बदलाव आता है। सर्दी और गर्मी का संधिकाल होने के कारण मानसिक और शारीरिक अस्थिरता बढ़ जाती है, जिससे विवाह या अन्य मांगलिक कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। यह होली के उल्लास और परिवर्तन की तैयारी करने का भी अवसर होता है।



डिस्क्लेमर: यहाँ दी गई सभी जानकारियां समाजिक व धार्मिक आस्थाओं पर आधारित है, rsnews.in इसकी पुष्टि नही करता। हम किसी भी तरह का अन्धविश्वास का पुरजोर खंडन करते हैं।

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