हिन्दू धर्म के अनुसार पत्नी वामांगी क्यों कहलाती है, क्या है इसके पीछे का दिद्धान्त ❓

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By - Ravi Sharma
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नई दिल्ली।  नमस्कार दोस्तो आज हम आपके लिए एक आकर्षक और ज्ञान का विषय लेकर आया है आशा है आप सबको बेहद पसन्द करेंगे।


आप शादी समारोह में जाते हैं तो अक्सर आपने शादी विवाह में पंडित जी से वधु (दुल्हन) को कहते सुना होगा कि पत्नी वामांगी होती है?



पत्नी वाम पत्नी्गी होती है क्योंकि हिन्दू धर्म के पुराणों व शास्त्रों में पत्नी को वामंगी कहा गया है, जिसका अर्थ होता है बाएं अंग का अधिकारी। इसलिए पुरुष के शरीर का बायां हिस्सा स्त्री का माना जाता है।



इसका कारण है?


इसका कारण यह है, कि भगवान शिव के बाएं अंग से स्त्री की उत्पत्ति हुई है। जिसका एकमात्र प्रतीक शिव का अर्धनारीश्वर शरीर है। यही कारण है कि हस्तरेखा विज्ञान की कुछ पुस्तकों में स्पष्ट लिखा है कि पुरुषों के दाएं हाथ से पुरुष की और बाएं हाथ से स्त्री की स्थिति देखने की बात कही गई।





इन कामों में पत्नी को पति के बायीं ओर रहना चाहिए।


शास्त्रों में कहा गया है कि स्त्री पुरुष की वामांगी होती है इसलिए सभा में, सिंदूरदान, द्विरागमन, आशीर्वाद ग्रहण करते समय और भोजन के समय स्त्री को अपने पति के बायीं ओर रहना चाहिए। शुभ फल की प्राप्ति होती है।




दायीं ओर कब रहना चाहिए।


वामांगी होने के बावजूद भी कुछ कामों में स्त्री को दायीं ओर रहने के बात शास्त्र कहते हैं। शास्त्रों में बताया गया है, कि कन्यादान, विवाह, यज्ञकर्म, जातकर्म, नामकरण और अन्न प्राशन के समय पत्नी को पति के दायीं ओर ही बैठना चाहिए। यज्ञ, कन्यादान, विवाह यह सब काम पारलौकिक माने जाते हैं और ये पुरुष प्रधान माना गया है। इसलिए ये कर्मों में पत्नी को अपने पति के दयँ ओर बैठने के नियम हैं।





यह मान्यता क्यों है?


पत्नी के पति के दाएं या बाएं बैठने से संबंधित इस मान्यता के पीछे विशेष तर्क यह है, कि जो कर्म संसारिक होते हैं उसमें पत्नी पति के बायीं ओर बैठती है। क्योंकि यह कर्म स्त्री प्रधान कर्म माने जाते व कहलाताते हैं।




पं। शर्मा जी

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